Monday, July 26, 2010

गुदगुदाता रहश्य........."THE MYSTERY OF THE PINE COTTAGE"


मैं बातें करना नहीं भूला....हाँ आप लोगों से अपनी बाते बाँट नहीं पाया....या फिर यूँ कहूँ कि कोशिश करता रहा वो भी दिखावे के लिए. अब माफ़ी मांगू तो, वो भी अन्याय होगा, आप सभी के साथ.....अब मैं जैसा हूँ सभी कमियों के साथ मुझे आप सबके बीच चहकने का मौका दीजिये....कोशिश करूँगा... ओये फिर वही शब्द!! अब इससे पीछा नहीं छूट सकता.....क्योंकि "कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती".... हाँ सच है...एकदम निखालिस..........डॉ. संतोष मैगजीन ने कभी न हारने का जैसे ठेका ही ले लिया है.....पेशे से कालेज में मास्टरी करती हैं...soorryyyyy अब प्रिंसिपली भी करने लगी हैं...लेकिन घर पर एकदम उल्टा काम करती हैं सालों से....जी साब.... वो लिखती हैं...उपन्यास!! बेस्ट सेलर बनाने के लिए नहीं बल्कि बेस्ट रीडर पैदा करने के लिए.... एक बात और वो हमारी गुरु हैं...ये बात अलग है कि हम आज तक उनकी क्लास में पढ़ने नहीं गए. खैर डॉ. संतोष मैगजीन की नई किताब आई है....बाज़ार में भी उतर चुकी है...आज बात उसी पर करेंगे...अपनी गुरु की उपन्यास है...जमकर करेंगे चीर फाड़...तो लीजिये अब हम भी हाज़िर हैं नए 'लुक' में.....कृपया हमें साहित्य समीक्षक की तरह सुना-समझा जाए...हहहहहहहाहा.......!!!!


आजकल कोई मुस्कराता क्यों नहीं...बुझे से...बोझिल से चेहरों से भरी सड़क-बाज़ार-स्कूल-कालेज-घर....उहूँ.....अरे भाई हँसाना सीखिए. पढ़िए....."THE MYSTERY OF THE PINE COTTAGE" .....सबसे बड़ा मजाक तो यही है.....रहस्य में भी हंसी खोजने चले है.....संतोष मैगजीन भी हद ही करती हैं....खुद हमेशा 'बबली-डबली' की तरह हंसती-मुस्कराती हैं और कभी कभी तो अचानक 'चीख चिल्लाहट टाइप' हंस देती हैं.....उनके स्वाभाव का यही चरित उनकी उपन्यासों में भी मिलता है...... "रहस्य" पर उपन्यासों की श्रंखला लिख रही हैं....."THE MYSTERY OF THE PINE COTTAGE" इस कड़ी में तीसरी है. ये एसा रहस्य है जो आपको डराता नहीं बल्कि रोमांचित करता है...और आप पढ़ते-पढ़ते इस कदर खो जाते हैं कि कब आनंद से सराबोर हो जाएँ पता ही नहीं चलता. उपन्यास के पात्र भूतिया नहीं हैं ('चंद्रकांता' के क्रूरसिंह या विषकन्या टाइप तो कतई नहीं)....इन पात्रों में आप खुद को भी शामिल कर लेंगे.


....."THE MYSTERY OF THE PINE COTTAGE" एक शैपैन की बोतल की तरह खुलती है.....वो इसलिए कि, लेखिका पढ़ने की आदत डालना चाहती है....खासतौर पर बच्चों और युवाओं में. सच मानिये तो प्रोढ़ और बुजुर्ग भी अगर इस उपन्यास को पढ़े तो मस्ती से पढ़ जायेंगे. खास बात ये कि इन उपन्यासों में अंग्रेजी साहित्य की हर विधा....अलंकार का उपयोग किया गया है....ये साहित्यिक स्वाद देना आजकल के लेखकों ने भुला ही दिया है. मैंने कई बार ये जानने की कोशिश कि तो पता चला कि लेखक और प्रकाशकों ने ये तय कर लिया कि आज कल लोगो को "LEISURE READING" की आदत है न कि साहत्यिक की!! पर संतोष मैगजीन इसे लौटा लाइ हैं....नयी-नयी 'फ्रेसेस' बनाती हैं...भाषा पर पकड़ है और इतनी सरस कि पढ़ते समय कोई तकलीफ नहीं होगी....साहित्य के प्रति अबूझ से भय को मन से निकालिए और ....."THE MYSTERY OF THE PINE COTTAGE" पढ़ डालिए......

हाँ........"THE MYSTERY OF THE PINE COTTAGE" के प्रीफेस में लिखी कविता की कुछ पंक्तिया मैं यहाँ कोट करना नहीं भूलना चाहता.........

“Books can transport you to Lewis Carroll’s Wonderland.
And make you travel with Gulliver to Lilliputland.
With Stevenson you can hunt for treasure.
In Treasure Island which will be a great pleasure."