राम रहीम में अंतर नाही रटने वाले देश में आज फैसला राम और रहीम के बीच ही होना है. धर्म और आस्था के ज्वार के बीच कानून बताएगा, कि मिलकियत का मालिक कौन है??
जी, फैसला है लखनऊ में...अयोध्या के ढांचे का..कि ये मंदिर था या मस्जिद है....साठ साल की हो गई है ये कानूनी जंग....
हम बतायेगे एक एक हिज्जा इस मुकदमे का....फैसले से पहले....
मुद्दा जो बना मुकदमा..............
२२-२३ दिसंबर १९४९.... रामलला की मूर्तियाँ आगन से छत के नीचे जा पहुंची.....छत से पटा ये कमरा था 'बाबरी मस्जिद' ...बस यहीं से शुरू हुआ झगडा मंदिर-मस्जिद का...मुद्दा था कि आखिर मूर्तियाँ राम चबूतरे से मस्जिद में पहुंची कैसे??? और यही मुद्दा बन गया मुकदमा!!
मुकदमे के सवाल.....
शुरूआती मुद्दा सिर्फ ये था कि मूर्तियाँ मस्जिद के आँगन में पहले से बने राम चबूतरे पर वापस जाएँ या फिर उनकी पूजा वहीँ अन्दर ही चलती रहे.
साठ साल में दर्जनों सवाल कोर्ट के सामने आ गए जिनका जबाब फैसले में मिलना हाई.........
१. मोटे तौर पर कोर्ट को तय करना हाई..क्या विवादित जगह पर कोई मस्जिद थी, कब बनी और क्या उसे बाबर या मीर बाकी ने बनवाया?
२. क्या विवादित जगह रामलला का जन्म स्थान हाई और यहाँ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बने गई?
३. तकनीकी तौर पर बड़ा सवाल है..क्या मुकदमा करने वालों को इसका वाजिव हक भी है?
सवा सौ साल का फैसला....
झगडा अंग्रेजों के जमाने से भी जुदा है....1885-86 में अंगरेजी अदालत ने फैसला दिया था....मुक़दमा ठोका था निर्मोही अखाड़े ने....अखाड़े ने बाबरी से सटे राम चबूतरे पर मंदिर बनाने का दावा किया था.....अदालत ने इसे ख़ारिज कर दिया....अदालत ने कहा कि मंदिर बनाने से साम्प्रदायिक खून खराबा हो सकता है...
अदालत के मुताबिक मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाना दुर्भायपूर्ण है लेकिन ....साढे तीन सौ साल पुरानी गलती ठीक नहीं हो सकती!!
लखनऊ में हाई कोर्ट को ये भी तय करना है कि सवा सौ साल पुराना फैसला लागू है या नहीं???
साठ साल-पांच मुकदमे-३० मुद्दई......
अदालत के सामने मालिकाना हक के लिए पांच मुकदमे दायर हुए.....एक मुक़दमा वापस हो गया...अब चार मुकदमे फैसले का इंतजार कर रहे हैं........
चार मुकदमों को ३० मुद्दई लड़ रहे हैं...
मुकादमा नंबर-१: २३ दिसंबर 1949 को फैजाबाद जिला प्रशासन ने किया..
मुक़दमा नंबर- २: 16 जनवरी 1950 को हिन्दू महासभा के नेता गोपाल सिंह विशारद ने सिविल कोर्ट में अर्जी लगाइ और मूर्तियों को न हटाने व पूजा की मांग की.
मुक़दमा नंबर-३: 1950 में ही दिगंबर अखाडा के रामचंद्र परमहंस दास ने दायर किया, 1989 में उसे वापस ले लिया.
मुकादम नंबर-४: 1961-62 के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड और स्थानीय मुसलमानों ने मिलकर दायर किया और मस्जिद का कब्ज़ा माँगा.
मुकदमा नंबर-५: 1989 में रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने दायर किया....रामलला को इस जमीन और ईमारत का जायज मालिक बताया.
गवाह-सुबूत……………..
अपने दावे के पक्ष में हिंदुओं ने 54 और मुस्लिम पक्ष ने 34 गवाह पेश किए. इनमे धार्मिक विद्वान, इतिहासकार और पुरातत्व जानकार शामिल हैं.
मुस्लिम पक्ष ने अपने समर्थन में 12 हिंदुओं को भी गवाह के तौर पर पेश किया. दोनों पक्षों ने लगभग 15 हज़ार पेज दस्तावेज़ी सबूत पेश किए. कई पुस्तकें भी अदालत में पेश की गईं.
बाबरी के दावे........
१. मुस्लिम पक्ष के मुताबिक निर्मोही अखाडा ने 1885 में सिर्फ रामचबूतरे पर दावा किया था...अब वो पलट रहा है.
२. मुस्लिम पक्ष रामचबूतरे और अयोध्या को रामलला के जन्मस्थल के रूप में स्वीकार करता है.....
३. लेकिन विवादित स्थल पर मस्जिद को ही स्वीकार करता है..
४. बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर बनाइ गई..न कि किसी ईमारत को तोड़कर.
मंदिर के दावे....
१. बादशाह बाबर ने पुराना राम मंदिर तोडा और वहां मस्जिद बना दी...जिसे बाबरी मस्जिद कहा गया.
२. पुरातात्विक सबूतों को आधार बनाया गया
३. हाई कोर्ट के आदेश पर हुई खुदाई में मंदिर के अवशेष मिलने का दावा.
मंदिर आन्दोलन:
- 1984 में राम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति ने VHP और RSS के साथ मिलकर विवादित ईमारत का ताला खुलवाने का आन्दोलन छेड़ा....
-इसने देश की राजनीति और अयोध्या मुद्दे की दिशा ही बदल दी.
-राम शिलाओं का पूजन करवाया गया.
-बाद में इस आन्दोलन के कमान BJP नेता लाल कृष्ण अडवानी के कब्ज़ा ली.
-1986 में एक स्थानीय वकील की अर्जी पर फैजावाद के डीएम ने विवादित ईमारत का ताला खुलवा दिया.
-इससे नाराज़ मुसलमानों ने बाबरी एक्शन कमिटी बना ली.
-1989 में VHP ने मंदिर बनाने का अभियान उग्र कर दिया और विवादित स्थल के करीब मंदिर की नीव रखी.
-1990 में VHP कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद को कुछ नुक्सान पहुचाया.
-1992 में ६ दिसंबर को VHP, BJP और शिवसेना की भीड़ बाबरी मस्जिद को तोड़ डाला.
- 1998 में मतों का ध्रुवीकरण हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी ने BJP की गठबंधन सरकार दिल्ली में बनाई..
'बात' से नहीं बनी "बात" .......
तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से लेकर कांची के शंकराचार्य और जस्टिस पलोक चटर्जी ने मुद्दे को कोर्ट के बहार बातचीत करके सुलझाने की कोशिश की लेकिन बात बन नहीं पाई.
मालिक को मिलेगी आधा विस्वा जमीन.......
जस्टिस एस यू खान, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में सुनवाई पूरी कर ली है....अब फैसले की घडी आ चुकी है......
इन साठ सालों में दावेदार बढ़ते गए और जमीन घटती गई.....आप जानेंगे तो चौंक उठेंगे...... सौ एकड़ के तेईस प्लॉटों से घटते घटते सिर्फ 1250 वर्ग फीट जमीन बची है यानि आधे विस्वा से भी कम. ......
Tuesday, September 28, 2010
मुद्दे की बात
राम-रहीम, रटते हैं हम
अरदास-प्रार्थना, करते हैं हम
मंदिर-मस्जिद में बंटते नहीं हम
एक ईमान, एक मकसद हैं हम
अहले वतन के आशिक हैं हम
मिटटी की सौगंध खाते हैं हम
न बटेंगे, न लड़ेंगे, न भड़केंगे हम
वायदा ये करते हैं हम
फैसला चाहे जो भी हो.......
हिंद हैं हम भारत हैं हम
हिंद ही रहेंगे हम.
अरदास-प्रार्थना, करते हैं हम
मंदिर-मस्जिद में बंटते नहीं हम
एक ईमान, एक मकसद हैं हम
अहले वतन के आशिक हैं हम
मिटटी की सौगंध खाते हैं हम
न बटेंगे, न लड़ेंगे, न भड़केंगे हम
वायदा ये करते हैं हम
फैसला चाहे जो भी हो.......
हिंद हैं हम भारत हैं हम
हिंद ही रहेंगे हम.
Wednesday, August 4, 2010
शून्य में अस्तित्व
अणु का शून्य में विलयन"..............
मन को भ्रमित करता है
आकृति में कटाव करता है
'काल' की उपस्थिति दर्ज करता है
अस्तित्व मेटने का दावा करता है.
उस "घोल" में डुबकी से इनकार करता है.........
वो 'उस मिलन' से दूर भागता है.
"काल" के इस षणयंत्र को तोड़ सच का संज्ञान
शून्य में समा जाना ही है अस्तित्व की पहचान!!
मन को भ्रमित करता है
आकृति में कटाव करता है
'काल' की उपस्थिति दर्ज करता है
अस्तित्व मेटने का दावा करता है.
उस "घोल" में डुबकी से इनकार करता है.........
वो 'उस मिलन' से दूर भागता है.
"काल" के इस षणयंत्र को तोड़ सच का संज्ञान
शून्य में समा जाना ही है अस्तित्व की पहचान!!
Monday, July 26, 2010
गुदगुदाता रहश्य........."THE MYSTERY OF THE PINE COTTAGE"
मैं बातें करना नहीं भूला....हाँ आप लोगों से अपनी बाते बाँट नहीं पाया....या फिर यूँ कहूँ कि कोशिश करता रहा वो भी दिखावे के लिए. अब माफ़ी मांगू तो, वो भी अन्याय होगा, आप सभी के साथ.....अब मैं जैसा हूँ सभी कमियों के साथ मुझे आप सबके बीच चहकने का मौका दीजिये....कोशिश करूँगा... ओये फिर वही शब्द!! अब इससे पीछा नहीं छूट सकता.....क्योंकि "कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती".... हाँ सच है...एकदम निखालिस..........डॉ. संतोष मैगजीन ने कभी न हारने का जैसे ठेका ही ले लिया है.....पेशे से कालेज में मास्टरी करती हैं...soorryyyyy अब प्रिंसिपली भी करने लगी हैं...लेकिन घर पर एकदम उल्टा काम करती हैं सालों से....जी साब.... वो लिखती हैं...उपन्यास!! बेस्ट सेलर बनाने के लिए नहीं बल्कि बेस्ट रीडर पैदा करने के लिए.... एक बात और वो हमारी गुरु हैं...ये बात अलग है कि हम आज तक उनकी क्लास में पढ़ने नहीं गए. खैर डॉ. संतोष मैगजीन की नई किताब आई है....बाज़ार में भी उतर चुकी है...आज बात उसी पर करेंगे...अपनी गुरु की उपन्यास है...जमकर करेंगे चीर फाड़...तो लीजिये अब हम भी हाज़िर हैं नए 'लुक' में.....कृपया हमें साहित्य समीक्षक की तरह सुना-समझा जाए...हहहहहहहाहा.......!!!!
आजकल कोई मुस्कराता क्यों नहीं...बुझे से...बोझिल से चेहरों से भरी सड़क-बाज़ार-स्कूल-कालेज-घर....उहूँ.....अरे भाई हँसाना सीखिए. पढ़िए....."THE MYSTERY OF THE PINE COTTAGE" .....सबसे बड़ा मजाक तो यही है.....रहस्य में भी हंसी खोजने चले है.....संतोष मैगजीन भी हद ही करती हैं....खुद हमेशा 'बबली-डबली' की तरह हंसती-मुस्कराती हैं और कभी कभी तो अचानक 'चीख चिल्लाहट टाइप' हंस देती हैं.....उनके स्वाभाव का यही चरित उनकी उपन्यासों में भी मिलता है...... "रहस्य" पर उपन्यासों की श्रंखला लिख रही हैं....."THE MYSTERY OF THE PINE COTTAGE" इस कड़ी में तीसरी है. ये एसा रहस्य है जो आपको डराता नहीं बल्कि रोमांचित करता है...और आप पढ़ते-पढ़ते इस कदर खो जाते हैं कि कब आनंद से सराबोर हो जाएँ पता ही नहीं चलता. उपन्यास के पात्र भूतिया नहीं हैं ('चंद्रकांता' के क्रूरसिंह या विषकन्या टाइप तो कतई नहीं)....इन पात्रों में आप खुद को भी शामिल कर लेंगे.
....."THE MYSTERY OF THE PINE COTTAGE" एक शैपैन की बोतल की तरह खुलती है.....वो इसलिए कि, लेखिका पढ़ने की आदत डालना चाहती है....खासतौर पर बच्चों और युवाओं में. सच मानिये तो प्रोढ़ और बुजुर्ग भी अगर इस उपन्यास को पढ़े तो मस्ती से पढ़ जायेंगे. खास बात ये कि इन उपन्यासों में अंग्रेजी साहित्य की हर विधा....अलंकार का उपयोग किया गया है....ये साहित्यिक स्वाद देना आजकल के लेखकों ने भुला ही दिया है. मैंने कई बार ये जानने की कोशिश कि तो पता चला कि लेखक और प्रकाशकों ने ये तय कर लिया कि आज कल लोगो को "LEISURE READING" की आदत है न कि साहत्यिक की!! पर संतोष मैगजीन इसे लौटा लाइ हैं....नयी-नयी 'फ्रेसेस' बनाती हैं...भाषा पर पकड़ है और इतनी सरस कि पढ़ते समय कोई तकलीफ नहीं होगी....साहित्य के प्रति अबूझ से भय को मन से निकालिए और ....."THE MYSTERY OF THE PINE COTTAGE" पढ़ डालिए......
हाँ........"THE MYSTERY OF THE PINE COTTAGE" के प्रीफेस में लिखी कविता की कुछ पंक्तिया मैं यहाँ कोट करना नहीं भूलना चाहता.........
“Books can transport you to Lewis Carroll’s Wonderland.
And make you travel with Gulliver to Lilliputland.
With Stevenson you can hunt for treasure.
In Treasure Island which will be a great pleasure."
Wednesday, March 31, 2010
अब पढ़ना होगा......!!!!
(जैसे आप रोटी खाते हैं......बोलने की आज़ादी रखते हैं........अब पढ़ना भी पढ़ेगा.....ये कानून लागू हो रहा है....आज से. बस सोचा तो..कुछ कह बैठा.... )
_____________________________________________________________________________
आज हमारी खबर बड़ी है....................
मात्रा और आखर में जंग छिड़ी है
आगे दौड़ने की होड़ मची है
मंजिल से मिलने की ललक चढ़ी है.
आज हमारी बात बड़ी है...............
जल-नभ-थल में खोज चली है
शहर-गाँव की खाई भरी है
कौन अपढ़ ये तलाश हुई है.
आज हमारी लड़ाई बड़ी है............
हक पहुचाने की राह खुली है
कौन पढ़े..ये सवाल नहीं है
सभी पढ़ें- बस कानून यही है!!!!!!!!!!
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आज हमारी खबर बड़ी है....................
मात्रा और आखर में जंग छिड़ी है
आगे दौड़ने की होड़ मची है
मंजिल से मिलने की ललक चढ़ी है.
आज हमारी बात बड़ी है...............
जल-नभ-थल में खोज चली है
शहर-गाँव की खाई भरी है
कौन अपढ़ ये तलाश हुई है.
आज हमारी लड़ाई बड़ी है............
हक पहुचाने की राह खुली है
कौन पढ़े..ये सवाल नहीं है
सभी पढ़ें- बस कानून यही है!!!!!!!!!!
Tuesday, March 23, 2010
बलात्कार.....एक छोटी सी बात!!!
बलात्कार....खूब करो....जब चाहे...तब करो....टेन्सन की कोई जरुरत नहीं. कानून क्या कर लेगा??
पहली लाइन पढ़कर ही आपने गलियाँ देना शुरू कर दिया होगा....कुछ ने तो मेरे चित्र पर जूते मार भी दिए होंगे........महिलाओं के हक-हकुकों के स्यंभू ठेकेदार NGO वाले तो चल पड़े होंगे मेरे खिलाफ 376 का मुक़दमा दर्ज करने..........!!!
प्लीज़ रुकिए...में बलात्कारी नहीं हूँ और न ही बलात्कार का प्रचारक....माफ़ कर दीजिये मुझे.. मैं तो आपको सच की बदसूरत तस्वीर दिखाने लगा हूँ!!
जी साब...मेरी बात मानिये.... बात तो सुन लीजिये प्लीज़!!!!!!!!!!!!!
गलती मेरी नहीं है आजकल ये चल निकला है.....बलात्कार करना कोई कठिन काम नहीं रहा....अभी बलात्कार करो....कुछ घंटों बाद मुक्त....छोटी सी कीमत चुका दो...बस!!
वाकई में यही हुआ. कल में दफ्तर में बैठा था...मेरे साथी अगले दिन की खबरों की प्लानिंग में जुटे थे.....तभी आधी रात को एक खबर आई...नबाबों के शहर रामपुर से. (इसे अब जयप्रदा-अमर सिंह-आज़म खान के नाम से भी जाना जाता है).....रिपोर्टर बोला...नाबालिग के साथ बलात्कार हुआ..पंचायत ने लड़की के घरवालों को तीस हज़ार रुपये दिलवाकर इस बात को भूल जाने के लिए कह दिया. पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई जाएगी.
खबर तो क्या....लगा कि जैसे बाईबल से कोई सेटन के स्पीच सुना रहा हो! काम ख़त्म करके घर जाने से पहले दिमाग का कचरा हो गया.....
बरिष्ठ सहकर्मी रुपेश श्रोती मेरे पास आये और खबर पटक कर बोले कि खबर बड़ी है.....इसकी 'पंच-लाइन' लिख दो.....आप लिखोगे तो सुबह की मीटिंग में खबर को हाथों-हाथ उठा लेंगे.
मूड उखड़ा हुआ था....मन उद्वेलित था....लेकिन क्या करता...जिस धंधे में हूँ...उसमे भावनाओं का कोई अर्थ नहीं....काम तो करना ही है सो, कीबोर्ड पर उंगलियाँ चलने लगी...अनमनी सी...पाँच पंक्तियाँ लिखी:
" बलात्कार का खुला है बाज़ार
पंच बन गए हैं दलाल
बम्पर ऑफर है इस बार
बलात्कार करो...तीस हज़ार दो
बलात्कार करो...सिर्फ पांच जूते लो"
एक महिला की इज्जत की कोई कीमत नहीं...ये जुमला हम सुनते आये हैं लेकिन 'पंच परमेश्वरों' ने हालत बदल दिए हैं....उन्होंने महिला की इज्जत की 'कम' ही सही पर कुछ 'कीमत' तो तय कर ही दी. अब वो गरीब नाबालिग लड़की...उसके माँ-बाप नहीं हैं...चाचा के साथ रहती है. वो क्या करे जवान होने लगी...तो अनाथ लड़की कैसे बचे मर्दों की मर्दानिगी से...सो तीन दिन पहले उसके साथ बलात्कार कर दिया गया...अब बेचारी रोये कैसे...और किससे मांगे न्याय?? गाँव में पचायत लग गई...बड़ी बात तो ये कि पंचों को पीडिता ने नहीं बल्कि "उस मर्द" ने बुलाया....फैसला कर दिया पंचों ने...अनाथ-गरीब को ३० हज़ार देने का एलान कर दिया गया. पुलिस में जाने की मनाही कर दी गई.
ये कोई नई बात नहीं है जो मैं आपको बता रहा हूँ. महज़ छह दिन पहले गाजिआबाद में पंचायत-वादियों ने यही किया.....एक 'मर्द' ने लड़की की इज्जत लूटी और पहुँच गया पंचों की शरण में...पंचायत के मर्दों ने अपनी ताकत का इस्तेमाल किया और "मर्द" को पांच जूते की सजा देकर छोड़ दिया गया...लड़की को न्याय मिल गया???????? पंचायती-मर्द मूछों पर ताव देकर निकल लिए.
ऐसे सैकड़ों केस होते हैं हिंदुस्तान में जहाँ बलात्कारी को अगला बलात्कार करने के लिए छोड़ दिया जाता है......
पंचायतों ने दलाली की एजेंसी खोल ली है......बलात्कारी को बचाने के लिए वो कुछ भी कर लेते हैं..... अब बताइए कि मैं कहाँ गलत था....क्या अब भी आप मुझे गरियायेंगे या फिर कुछ शर्म-हया खोजने निकलेंगे...............................!!
पहली लाइन पढ़कर ही आपने गलियाँ देना शुरू कर दिया होगा....कुछ ने तो मेरे चित्र पर जूते मार भी दिए होंगे........महिलाओं के हक-हकुकों के स्यंभू ठेकेदार NGO वाले तो चल पड़े होंगे मेरे खिलाफ 376 का मुक़दमा दर्ज करने..........!!!
प्लीज़ रुकिए...में बलात्कारी नहीं हूँ और न ही बलात्कार का प्रचारक....माफ़ कर दीजिये मुझे.. मैं तो आपको सच की बदसूरत तस्वीर दिखाने लगा हूँ!!
जी साब...मेरी बात मानिये.... बात तो सुन लीजिये प्लीज़!!!!!!!!!!!!!
गलती मेरी नहीं है आजकल ये चल निकला है.....बलात्कार करना कोई कठिन काम नहीं रहा....अभी बलात्कार करो....कुछ घंटों बाद मुक्त....छोटी सी कीमत चुका दो...बस!!
वाकई में यही हुआ. कल में दफ्तर में बैठा था...मेरे साथी अगले दिन की खबरों की प्लानिंग में जुटे थे.....तभी आधी रात को एक खबर आई...नबाबों के शहर रामपुर से. (इसे अब जयप्रदा-अमर सिंह-आज़म खान के नाम से भी जाना जाता है).....रिपोर्टर बोला...नाबालिग के साथ बलात्कार हुआ..पंचायत ने लड़की के घरवालों को तीस हज़ार रुपये दिलवाकर इस बात को भूल जाने के लिए कह दिया. पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई जाएगी.
खबर तो क्या....लगा कि जैसे बाईबल से कोई सेटन के स्पीच सुना रहा हो! काम ख़त्म करके घर जाने से पहले दिमाग का कचरा हो गया.....
बरिष्ठ सहकर्मी रुपेश श्रोती मेरे पास आये और खबर पटक कर बोले कि खबर बड़ी है.....इसकी 'पंच-लाइन' लिख दो.....आप लिखोगे तो सुबह की मीटिंग में खबर को हाथों-हाथ उठा लेंगे.
मूड उखड़ा हुआ था....मन उद्वेलित था....लेकिन क्या करता...जिस धंधे में हूँ...उसमे भावनाओं का कोई अर्थ नहीं....काम तो करना ही है सो, कीबोर्ड पर उंगलियाँ चलने लगी...अनमनी सी...पाँच पंक्तियाँ लिखी:
" बलात्कार का खुला है बाज़ार
पंच बन गए हैं दलाल
बम्पर ऑफर है इस बार
बलात्कार करो...तीस हज़ार दो
बलात्कार करो...सिर्फ पांच जूते लो"
एक महिला की इज्जत की कोई कीमत नहीं...ये जुमला हम सुनते आये हैं लेकिन 'पंच परमेश्वरों' ने हालत बदल दिए हैं....उन्होंने महिला की इज्जत की 'कम' ही सही पर कुछ 'कीमत' तो तय कर ही दी. अब वो गरीब नाबालिग लड़की...उसके माँ-बाप नहीं हैं...चाचा के साथ रहती है. वो क्या करे जवान होने लगी...तो अनाथ लड़की कैसे बचे मर्दों की मर्दानिगी से...सो तीन दिन पहले उसके साथ बलात्कार कर दिया गया...अब बेचारी रोये कैसे...और किससे मांगे न्याय?? गाँव में पचायत लग गई...बड़ी बात तो ये कि पंचों को पीडिता ने नहीं बल्कि "उस मर्द" ने बुलाया....फैसला कर दिया पंचों ने...अनाथ-गरीब को ३० हज़ार देने का एलान कर दिया गया. पुलिस में जाने की मनाही कर दी गई.
ये कोई नई बात नहीं है जो मैं आपको बता रहा हूँ. महज़ छह दिन पहले गाजिआबाद में पंचायत-वादियों ने यही किया.....एक 'मर्द' ने लड़की की इज्जत लूटी और पहुँच गया पंचों की शरण में...पंचायत के मर्दों ने अपनी ताकत का इस्तेमाल किया और "मर्द" को पांच जूते की सजा देकर छोड़ दिया गया...लड़की को न्याय मिल गया???????? पंचायती-मर्द मूछों पर ताव देकर निकल लिए.
ऐसे सैकड़ों केस होते हैं हिंदुस्तान में जहाँ बलात्कारी को अगला बलात्कार करने के लिए छोड़ दिया जाता है......
पंचायतों ने दलाली की एजेंसी खोल ली है......बलात्कारी को बचाने के लिए वो कुछ भी कर लेते हैं..... अब बताइए कि मैं कहाँ गलत था....क्या अब भी आप मुझे गरियायेंगे या फिर कुछ शर्म-हया खोजने निकलेंगे...............................!!
Saturday, March 6, 2010
इस बच्चन 'भाई' से डरना जरुरी है...........!!!
अमिताभ बच्चन कभी गरियाते थे....अब डरा रहे हैं.....सीधे सीधे कहूँ तो औकात बता रहे हैं....वो भी उसको, जिसकी वाकई बाज़ार में कोई हैसियत है. देश के सबसे बड़े मीडिया समूह के मालिकों की हैसियत नाप कर रख दी...."बच्चन घराने" के मालिक बच्चन साहब ने. उनको धमका दिया सरे बाज़ार....”या तो सार्वजानिक रूप से माफ़ी मागो नहीं तो...............................!!” है न अपने महानायक में दम!
इस मीडिया समूह के मालिक की गलती सिर्फ इतनी सी थी कि उनके स्वामित्व वाले अखवार ने खबर लिख दी कि बच्चन घराने को वारिस मिलने में वक्त लग सकता है क्योकिं घराने की 'इंटरनेशनल बहूजी' को पेट की टीबी होने की खबर है. और इन हालातों में बहुजी फ़िलहाल देश को कोई खुशखबरी देने में असमर्थ हैं.
बस बच्चन साहब हो गए गर्म....खुद भी गर्म...उनके घराने के 'छोटे भैया' भी गर्म और छोटे भैया का 'भानुमती कुनवा' तो गर्मी से उबलने लगा. लोकशाही के चौथे खम्भे में दोलन होने लगा.....लगा कि भूचाल न आ जाए...कई अखबार, मैगजीन और एक अंग्रेजी चैनल चलने वाले मालिकों का कलेजा मुहु को आ गया....
चलो बात को और खोल देते हैं.....ये समूह है "Times of India" और इसके अखबार "Mumbai Mirror" ने छापी थी खबर. रिपोर्टर को सोर्स से खबर मिली थी....एडिटर की हरी झंडी मिली और खबर छप गई. घराने ने सबसे पहले काले कोट बालों को बुला भेजा...’.जलसा’ पर क़ानूनी किताबों का सालसा हुआ....संबिधान को भी खगाला गया.....तब जाकर नोटिस लिखा गया....अखबार के एडिटर और रिपोर्टर को लपेट लिया गया.....अखबार के दफ्तर पर क़ानूनी कार्यवाही की सूचना चस्पा कर दी गई...कि आपने एक कुलीन महिला के मातृत्व पर सवाल उठाया है और इसके लिए संविधान के अनुच्छेद २१ के तहत अपराध सिद्ध होता है.
बेचारे ताकतवर-अरबपति! बच्चन घराने के साथ मीडिया समूह के मालिकों का पुराना रिश्ता रहा है सो उन्होंने व्यकिगत संबंधो के आधार पर मामले को निपटाने की कोशिश की. मरते क्या न करते, घराने के दरबार में फोन लगाया.... हाथाजोड़ी की. लेकिन बच्चन साहब न माने. धमका कर फोन पटक दिया.
लेकिन किस्सा यहीं ख़त्म नहीं हुआ....अब बच्चन साहब कोई मामूली आदमी तो हैं नहीं....एक घराने के मुखिया हैं! वो एक्टर ही नहीं सदी के महानायक हैं....प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तो छोड़ दीजिये....टीवी और अख़बारों में उनकी महानता का गुणगान राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी से भी ज्यादा होता है......महात्मा की जयंती और बरसी आती है तो टीवी में ३० सेकेंड का फूटेज चल जाता है और अख़बारों में एक फोटो के साथ दो लाइन. लेकिन बच्चन साहब के जन्मदिन पर तो, बकौल टीवी-अखबार: हर परिवार में जश्न मन रहा होता है.....राष्ट्रीय पर्व से भी ज्यादा ख़ुशी दिखाई जाती है......जैसे कि पूरा देश 'जलसा' के द्वार पर महानायक के दर्शन की प्रतीक्षा में खड़ा होता है......ऐसे में किसी मोहल्ले में मौत हो जाये तो पड़ोसियों को कन्धा देने का फुर्सत नहीं..... लेकिन ये बात भी अब पुरानी होने लगी है....अब तो बच्चन साहब फेमिली पैकेज मागने लगे हैं.....
यहाँ तक तो ठीक है.....लेकिन बच्चन तो ठहरे बच्चन..सो जनता के बीच पहुँच गए.....फिर जैन बंधुओं की हैसियत को सड़क पर ला पटका. अपने पिछलग्गू टीवी चैनल्स को टीआरपी की खुराक दी...बच्चन टीवी पर आये और 'अपराधी मीडिया समूह' को जमके धमकाया. राजनीती छोड़ दी हो पर राजनेता की तरह समझोता फार्मूला देने से भी नहीं चूंके. बच्चन साहब ने एलान क्या कि वो टाइम्स समूह के फिल्म फेयर पुरुस्कार समारोह में नहीं जायेंगे...वो खुद ही नहीं पत्नी-बेटा-बहुरानी भी नहीं जायेगे.....नाचेंगे-गायेंगे भी नहीं..... यानी आगे कि चार कुर्सियां खाली और पीछेवाली कुर्सी पर छोटे भैया-कुनबे सहित भी मौजूद नहीं होंगे........पूरी की पूरी पैकेज डील...
बच्चन साहब ने जैन बंधुओं(टाइम्स के मालिक) को ये भी याद दिलाया कि जब भी इस समूह को उनकी जरुरत हुई, वे हाज़िर हुए....लेकिन अब ये नहीं होगा. ये बात अलग है की बच्चन साहब के घराना स्थापित करने से पहले ही फिल्म फेयर की अपनी जागीर है......फिल्म फेयर के बेनर तले सैकड़ों फ़िल्मी हस्तियों के करियर को प्रमोसन मिला.....वो खुद भी उनमे से एक हैं.....अब स्टेज शो तो कोई मुफ्त में करता नहीं है....सो फिल्म फेयर को अपने प्रमोशन के लिए उनकी कितनी जरुरत होगी...ये आप फैसला कर लीजिये.
लेकिन बच्चन साहब तो ठहरे महा-मानव.....तो वो असलियत को क्यों माने......
कुछ वक़्त पहले भरतपुर में हमारे गुरूजी के अड्डे पर बहस भी छिड़ी कि अमिताभ बच्चन के खिलाफ कोई बोलने की हिम्मत क्यों नहीं करता......हालाँकि गुरूजी भी बेल्बोटम वाले अमिताभ के प्यार की जंजीर में जकडे रहे हैं.....फिर भी वो ये जानना चाहते हैं कि मीडिया से लेकर फ़िल्मी खिलाडियों तक - सभी अमिताभ से डरने क्यों लगे हैं............अचानक वो इस कदर ताकतवर कैसे हो गए?? उनके पॉवर प्ले का राज क्या है??
तो ये कोई एक दिन में खड़ा नहीं हुआ.....बच्चन परिवार से बच्चन घराने तक के सफ़र में राजनीती/सत्ता से कभी भी दूरी रही ही नहीं............माता-पिता की नेहरु से दोस्ती.....फिर इंदिरा गाँधी से पारिवारिक रिश्ता.....फिर अमिताभ-अजिताभ की राजीव-संजय गाँधी से भाईबंदी....फिर राजीव गाँधी के साथ संसद में अमिताभ का प्रवेश..... बोफोर्स से घायल होकर अमिताभजी का संसद को अलविदा....फिर घराने में 'समाजवाद' का प्रवेश....देवर अमर सिंह की रहनुमाई में जया बच्चन पहुच गईं संसद....फिर 'एश' जुडी घराने की बहु बनकर....यूँ ये बन गया बोलीबुड़ का सबसे बिकाऊ फॅमिली पैकेज!
टाइम्स के जैन भाई सोच रहे थे कि ये वही अपने विजय उर्फ़ अमिताभ बच्चन हैं.....मामला संभल जाएगा.....और न भी संभला तो अदालत में देख लेंगे....पर उन्हें महानायक के पोवार प्ले का अंदाज़ नहीं था...और उसी का खामियाजा भुगता भाइयों ने.
खैर बच्चन साहब नहीं गए फिल्म फेयर अवार्ड फग्सन में. पर अवार्ड तो दिए-लिए गए.....आगे की चार कुर्सियों पर नए लोगों को बैठने की जगह मिल गई. फिल्म फेयर समारोह में किसी को कोई कमी दिखाई नहीं दी. पिछले एक दशक में शायद पहली बार एसा हुआ कि किसी अवार्ड सेरेमनी में बच्चन फॅमिली पैकेज नहीं था. एक शगल सा बन गया था ये कि.....हर जगह बच्चन ही बच्चन....!!
अभी आप सोचेंगे हमने बेचारे बच्चन साहब को बदनाम करने का ठेका ले रखा है....तो प्लीस सच मानिये हमारी इतनी हैसियत नहीं कि हम आपके महानायक से दोस्ती या दुश्मनी कर सकें. हम तो सिर्फ महानायक के महाकाय स्वरुप को नजदीक से देखने भर की कोशिश कर रहे हैं...
सच कहें तो.....बच्चन साहब भले ही जैन बंधुओं की किरकिरी कर डाली हो.....एन अवार्ड समारोह के मौके पर सार्वजानिक माफ़ी मागने की मांग कर डाली हो.....जैन बंधुओं की कमजोर नब्ज पर हाथ डाल दिया हो..... लेकिन इस बार पासा खुद के लिए भी उल्टा ही रहा... उन्हें लगा कि टाइम्स ग्रुप अपनी गरज की खातिर मुहं में तिनका दबाये जलसा पर हाज़िर होकर हाथ जोड़ेगा....टाइम्स ऑफ़ इंडिया, मुंबई मिरर से लेकर टाइम्स नाओ पर माफीनामे की हेडलाइन होगी! यहाँ तक कि उनके सपने में भी आया हो कि फिल्म फेयर के स्टेज के बेकड्रॉप पर भी माफीनामा लिखा हो....! एसा हो न सका. यहाँ सवाल उसी नैतिकता का हो गया जिसकी दुहाई बच्चन साहब देते रहे हैं. जब साहब ने क़ानूनी जंग छेड़ ही दी....
एडिटर-रिपोर्टर को सजा दिलाने की मुहीम शुरू हो ही गई तो फिर व्यक्तिगत और सार्वजानिक रहा क्या.. माफ़ी मगवाने का ढोंग क्यों???????? अदालत में मुक़दमा लड़िये और अपराधियों को सजा दिलवाइए! पब्लिक से सहानुभूति क्यों मांग रहे है???? गलती मुंबई मिरर की तो फिर दुशमनी फिल्म फेयर से क्यों.....जैन परिवार को उलाहना किस बात का......... जब-जब उनके ग्रुप ने बुलाया तो नाचने-गाने का मेहनताना दिया.......अवार्ड देकर नाम बड़ा किया....फिर इस बयान के मायने क्या कि जब टाइम्स ग्रुप को जरुरत पड़ी तो बच्चन घराने ने साथ दिया!!
पर भाई...यही तो बच्चन घराने का पॉवर गेम है.....वक़्त-जरुरत के हिसाब से चाल चलो....जीत हमेशा अपने कब्जे में रखो. इसीलिए तो छोटे भैया के लिए इस कदर मुलायम हो गए कि सरेआम झूठ बोले: "यूपी में दम है क्योंकि जुर्म यहाँ कम है".... अब छोटे भैया असमाजवादी हो गए तो साहब ने मोदी का दामन थाम लिया----- गुजरात पर्यटन के ब्रांड एम्बेसडर बन गए...अपनी फिलम टेक्स फ्री करवा ली.....मोदी के साथ गलबहियां डाले उन्हें कोई शर्म भी नहीं आयी...क्योंकि भैया पैसा तो कमाना ही है... गाँधी से पट नहीं रही-मुलायम से 'छोटे' की खटपट हो गई तो अब मोदी का भगवा रंग ही सही!
बच्चन परिवार के बच्चन घराना बनाने पीछे यही पॉवर प्ले है.....जिसका मूल मंत्र है : "सत्ता-राजनीती से नजदीकी-किसी भी कीमत पर". सत्तानाशीनो से कैसा भेद! और जब अमिताभ मासूमियत से कहते हैं की "वो राजनीती नहीं कर सकते" ---तो लोग कहते हैं वह क्या बात है! लेकिन असल में यही तो बात है.....अमिताभ और उनके घराने से बेहतर राजनीती करना कोई जनता ही नहीं है. इसी के बल पर वो लोगो को डराते हैं. उनकी मासूमियत और ईमानदारी पर हम भरोसा करें भी तो कैसे? वो कलाकारी करने से बाज़ भी कहाँ आते हैं.
ऐसे खेल वो करते ही रहे हैं.... जमीन की खातिर किसान बन जाते हैं.....गरीब किसानो के हिस्से की जमीन औने-पौने दामों में हड़प ली. फिर अपनी बहु के नाम से कॉलेज बनाने की नीव रखी...सुर्खियाँ बटोरीं...अपनी महानता के किस्से गढ़वाए गए...और बच्चन साहब गायब हो गए..... कॉलेज बनाने का जिम्मा एक एनजीओ को दे दिया. यानि फर्जीवाडा करने से उनको कोई परहेज नहीं...
फिर भी हम उनसे चिपकते हैं...पूजा करते हैं....पीछे भागते हैं......लेकिन डरते नहीं! अरे भाई अमिताभ बच्चन से डरना जरुरी!!
वो तीन दशक से समझा रहे हैं.....................::
"मेरे दीवानों मुझे पहचानो"......अबे यार अब तो पहचान लो..........अबे सुनो न..ये क्या नायक-महानायक लगा रखा हैं..... मैं हूँ 'डान'!! तुमको मुझसे डरना होगा....तुमने सुना नहीं हमारी पत्नीश्री ने फिलम बनाई थी तुम सब को हमारी असलियत बताने के लिए... 'रिश्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं लेकिन नाम है शहंशाह'!
लेकिन हम हैं कि................................!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
इस मीडिया समूह के मालिक की गलती सिर्फ इतनी सी थी कि उनके स्वामित्व वाले अखवार ने खबर लिख दी कि बच्चन घराने को वारिस मिलने में वक्त लग सकता है क्योकिं घराने की 'इंटरनेशनल बहूजी' को पेट की टीबी होने की खबर है. और इन हालातों में बहुजी फ़िलहाल देश को कोई खुशखबरी देने में असमर्थ हैं.
बस बच्चन साहब हो गए गर्म....खुद भी गर्म...उनके घराने के 'छोटे भैया' भी गर्म और छोटे भैया का 'भानुमती कुनवा' तो गर्मी से उबलने लगा. लोकशाही के चौथे खम्भे में दोलन होने लगा.....लगा कि भूचाल न आ जाए...कई अखबार, मैगजीन और एक अंग्रेजी चैनल चलने वाले मालिकों का कलेजा मुहु को आ गया....
चलो बात को और खोल देते हैं.....ये समूह है "Times of India" और इसके अखबार "Mumbai Mirror" ने छापी थी खबर. रिपोर्टर को सोर्स से खबर मिली थी....एडिटर की हरी झंडी मिली और खबर छप गई. घराने ने सबसे पहले काले कोट बालों को बुला भेजा...’.जलसा’ पर क़ानूनी किताबों का सालसा हुआ....संबिधान को भी खगाला गया.....तब जाकर नोटिस लिखा गया....अखबार के एडिटर और रिपोर्टर को लपेट लिया गया.....अखबार के दफ्तर पर क़ानूनी कार्यवाही की सूचना चस्पा कर दी गई...कि आपने एक कुलीन महिला के मातृत्व पर सवाल उठाया है और इसके लिए संविधान के अनुच्छेद २१ के तहत अपराध सिद्ध होता है.
बेचारे ताकतवर-अरबपति! बच्चन घराने के साथ मीडिया समूह के मालिकों का पुराना रिश्ता रहा है सो उन्होंने व्यकिगत संबंधो के आधार पर मामले को निपटाने की कोशिश की. मरते क्या न करते, घराने के दरबार में फोन लगाया.... हाथाजोड़ी की. लेकिन बच्चन साहब न माने. धमका कर फोन पटक दिया.
लेकिन किस्सा यहीं ख़त्म नहीं हुआ....अब बच्चन साहब कोई मामूली आदमी तो हैं नहीं....एक घराने के मुखिया हैं! वो एक्टर ही नहीं सदी के महानायक हैं....प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तो छोड़ दीजिये....टीवी और अख़बारों में उनकी महानता का गुणगान राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी से भी ज्यादा होता है......महात्मा की जयंती और बरसी आती है तो टीवी में ३० सेकेंड का फूटेज चल जाता है और अख़बारों में एक फोटो के साथ दो लाइन. लेकिन बच्चन साहब के जन्मदिन पर तो, बकौल टीवी-अखबार: हर परिवार में जश्न मन रहा होता है.....राष्ट्रीय पर्व से भी ज्यादा ख़ुशी दिखाई जाती है......जैसे कि पूरा देश 'जलसा' के द्वार पर महानायक के दर्शन की प्रतीक्षा में खड़ा होता है......ऐसे में किसी मोहल्ले में मौत हो जाये तो पड़ोसियों को कन्धा देने का फुर्सत नहीं..... लेकिन ये बात भी अब पुरानी होने लगी है....अब तो बच्चन साहब फेमिली पैकेज मागने लगे हैं.....
यहाँ तक तो ठीक है.....लेकिन बच्चन तो ठहरे बच्चन..सो जनता के बीच पहुँच गए.....फिर जैन बंधुओं की हैसियत को सड़क पर ला पटका. अपने पिछलग्गू टीवी चैनल्स को टीआरपी की खुराक दी...बच्चन टीवी पर आये और 'अपराधी मीडिया समूह' को जमके धमकाया. राजनीती छोड़ दी हो पर राजनेता की तरह समझोता फार्मूला देने से भी नहीं चूंके. बच्चन साहब ने एलान क्या कि वो टाइम्स समूह के फिल्म फेयर पुरुस्कार समारोह में नहीं जायेंगे...वो खुद ही नहीं पत्नी-बेटा-बहुरानी भी नहीं जायेगे.....नाचेंगे-गायेंगे भी नहीं..... यानी आगे कि चार कुर्सियां खाली और पीछेवाली कुर्सी पर छोटे भैया-कुनबे सहित भी मौजूद नहीं होंगे........पूरी की पूरी पैकेज डील...
बच्चन साहब ने जैन बंधुओं(टाइम्स के मालिक) को ये भी याद दिलाया कि जब भी इस समूह को उनकी जरुरत हुई, वे हाज़िर हुए....लेकिन अब ये नहीं होगा. ये बात अलग है की बच्चन साहब के घराना स्थापित करने से पहले ही फिल्म फेयर की अपनी जागीर है......फिल्म फेयर के बेनर तले सैकड़ों फ़िल्मी हस्तियों के करियर को प्रमोसन मिला.....वो खुद भी उनमे से एक हैं.....अब स्टेज शो तो कोई मुफ्त में करता नहीं है....सो फिल्म फेयर को अपने प्रमोशन के लिए उनकी कितनी जरुरत होगी...ये आप फैसला कर लीजिये.
लेकिन बच्चन साहब तो ठहरे महा-मानव.....तो वो असलियत को क्यों माने......
कुछ वक़्त पहले भरतपुर में हमारे गुरूजी के अड्डे पर बहस भी छिड़ी कि अमिताभ बच्चन के खिलाफ कोई बोलने की हिम्मत क्यों नहीं करता......हालाँकि गुरूजी भी बेल्बोटम वाले अमिताभ के प्यार की जंजीर में जकडे रहे हैं.....फिर भी वो ये जानना चाहते हैं कि मीडिया से लेकर फ़िल्मी खिलाडियों तक - सभी अमिताभ से डरने क्यों लगे हैं............अचानक वो इस कदर ताकतवर कैसे हो गए?? उनके पॉवर प्ले का राज क्या है??
तो ये कोई एक दिन में खड़ा नहीं हुआ.....बच्चन परिवार से बच्चन घराने तक के सफ़र में राजनीती/सत्ता से कभी भी दूरी रही ही नहीं............माता-पिता की नेहरु से दोस्ती.....फिर इंदिरा गाँधी से पारिवारिक रिश्ता.....फिर अमिताभ-अजिताभ की राजीव-संजय गाँधी से भाईबंदी....फिर राजीव गाँधी के साथ संसद में अमिताभ का प्रवेश..... बोफोर्स से घायल होकर अमिताभजी का संसद को अलविदा....फिर घराने में 'समाजवाद' का प्रवेश....देवर अमर सिंह की रहनुमाई में जया बच्चन पहुच गईं संसद....फिर 'एश' जुडी घराने की बहु बनकर....यूँ ये बन गया बोलीबुड़ का सबसे बिकाऊ फॅमिली पैकेज!
टाइम्स के जैन भाई सोच रहे थे कि ये वही अपने विजय उर्फ़ अमिताभ बच्चन हैं.....मामला संभल जाएगा.....और न भी संभला तो अदालत में देख लेंगे....पर उन्हें महानायक के पोवार प्ले का अंदाज़ नहीं था...और उसी का खामियाजा भुगता भाइयों ने.
खैर बच्चन साहब नहीं गए फिल्म फेयर अवार्ड फग्सन में. पर अवार्ड तो दिए-लिए गए.....आगे की चार कुर्सियों पर नए लोगों को बैठने की जगह मिल गई. फिल्म फेयर समारोह में किसी को कोई कमी दिखाई नहीं दी. पिछले एक दशक में शायद पहली बार एसा हुआ कि किसी अवार्ड सेरेमनी में बच्चन फॅमिली पैकेज नहीं था. एक शगल सा बन गया था ये कि.....हर जगह बच्चन ही बच्चन....!!
अभी आप सोचेंगे हमने बेचारे बच्चन साहब को बदनाम करने का ठेका ले रखा है....तो प्लीस सच मानिये हमारी इतनी हैसियत नहीं कि हम आपके महानायक से दोस्ती या दुश्मनी कर सकें. हम तो सिर्फ महानायक के महाकाय स्वरुप को नजदीक से देखने भर की कोशिश कर रहे हैं...
सच कहें तो.....बच्चन साहब भले ही जैन बंधुओं की किरकिरी कर डाली हो.....एन अवार्ड समारोह के मौके पर सार्वजानिक माफ़ी मागने की मांग कर डाली हो.....जैन बंधुओं की कमजोर नब्ज पर हाथ डाल दिया हो..... लेकिन इस बार पासा खुद के लिए भी उल्टा ही रहा... उन्हें लगा कि टाइम्स ग्रुप अपनी गरज की खातिर मुहं में तिनका दबाये जलसा पर हाज़िर होकर हाथ जोड़ेगा....टाइम्स ऑफ़ इंडिया, मुंबई मिरर से लेकर टाइम्स नाओ पर माफीनामे की हेडलाइन होगी! यहाँ तक कि उनके सपने में भी आया हो कि फिल्म फेयर के स्टेज के बेकड्रॉप पर भी माफीनामा लिखा हो....! एसा हो न सका. यहाँ सवाल उसी नैतिकता का हो गया जिसकी दुहाई बच्चन साहब देते रहे हैं. जब साहब ने क़ानूनी जंग छेड़ ही दी....
एडिटर-रिपोर्टर को सजा दिलाने की मुहीम शुरू हो ही गई तो फिर व्यक्तिगत और सार्वजानिक रहा क्या.. माफ़ी मगवाने का ढोंग क्यों???????? अदालत में मुक़दमा लड़िये और अपराधियों को सजा दिलवाइए! पब्लिक से सहानुभूति क्यों मांग रहे है???? गलती मुंबई मिरर की तो फिर दुशमनी फिल्म फेयर से क्यों.....जैन परिवार को उलाहना किस बात का......... जब-जब उनके ग्रुप ने बुलाया तो नाचने-गाने का मेहनताना दिया.......अवार्ड देकर नाम बड़ा किया....फिर इस बयान के मायने क्या कि जब टाइम्स ग्रुप को जरुरत पड़ी तो बच्चन घराने ने साथ दिया!!
पर भाई...यही तो बच्चन घराने का पॉवर गेम है.....वक़्त-जरुरत के हिसाब से चाल चलो....जीत हमेशा अपने कब्जे में रखो. इसीलिए तो छोटे भैया के लिए इस कदर मुलायम हो गए कि सरेआम झूठ बोले: "यूपी में दम है क्योंकि जुर्म यहाँ कम है".... अब छोटे भैया असमाजवादी हो गए तो साहब ने मोदी का दामन थाम लिया----- गुजरात पर्यटन के ब्रांड एम्बेसडर बन गए...अपनी फिलम टेक्स फ्री करवा ली.....मोदी के साथ गलबहियां डाले उन्हें कोई शर्म भी नहीं आयी...क्योंकि भैया पैसा तो कमाना ही है... गाँधी से पट नहीं रही-मुलायम से 'छोटे' की खटपट हो गई तो अब मोदी का भगवा रंग ही सही!
बच्चन परिवार के बच्चन घराना बनाने पीछे यही पॉवर प्ले है.....जिसका मूल मंत्र है : "सत्ता-राजनीती से नजदीकी-किसी भी कीमत पर". सत्तानाशीनो से कैसा भेद! और जब अमिताभ मासूमियत से कहते हैं की "वो राजनीती नहीं कर सकते" ---तो लोग कहते हैं वह क्या बात है! लेकिन असल में यही तो बात है.....अमिताभ और उनके घराने से बेहतर राजनीती करना कोई जनता ही नहीं है. इसी के बल पर वो लोगो को डराते हैं. उनकी मासूमियत और ईमानदारी पर हम भरोसा करें भी तो कैसे? वो कलाकारी करने से बाज़ भी कहाँ आते हैं.
ऐसे खेल वो करते ही रहे हैं.... जमीन की खातिर किसान बन जाते हैं.....गरीब किसानो के हिस्से की जमीन औने-पौने दामों में हड़प ली. फिर अपनी बहु के नाम से कॉलेज बनाने की नीव रखी...सुर्खियाँ बटोरीं...अपनी महानता के किस्से गढ़वाए गए...और बच्चन साहब गायब हो गए..... कॉलेज बनाने का जिम्मा एक एनजीओ को दे दिया. यानि फर्जीवाडा करने से उनको कोई परहेज नहीं...
फिर भी हम उनसे चिपकते हैं...पूजा करते हैं....पीछे भागते हैं......लेकिन डरते नहीं! अरे भाई अमिताभ बच्चन से डरना जरुरी!!
वो तीन दशक से समझा रहे हैं.....................::
"मेरे दीवानों मुझे पहचानो"......अबे यार अब तो पहचान लो..........अबे सुनो न..ये क्या नायक-महानायक लगा रखा हैं..... मैं हूँ 'डान'!! तुमको मुझसे डरना होगा....तुमने सुना नहीं हमारी पत्नीश्री ने फिलम बनाई थी तुम सब को हमारी असलियत बताने के लिए... 'रिश्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं लेकिन नाम है शहंशाह'!
लेकिन हम हैं कि................................!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
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